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सवालों का बवंडर

मन आज कुछ अशांत सा है

कुछ सवाल हैं जो भंवर की तरह उलझाए हैं मुझे

 

कुछ ज़िन्दगी की क़शमक़श से जुड़े

कुछ सच और झूठ की बारीकी को मापते

कुछ रिश्तों की पेचीदगी को भाँपते

न जाने कितने ही सवालों की गूँज अशांत किये है मन को

 

क्या इन सवालातों से

कभी निजाद मिल पाएगी मुझे

या ये सवाल इसी तरह

मेरी शख़्सियत को खोखला करते रहेंगे

 

क्या ये सवाल इसी तरह

मेरे वजूद पर अंकुश लगाते रहेंगे

और मेरे हर सही गलत फैसले पर

मुझे शर्मिंदा करते रहेंगे

 

 

अब थक गया हूँ मैं,

मुसलसल इनके जवाब ढूंढते

अब नहीं रही हिम्मत

पाँवों तले खिसकती ज़मीं को उँगलियों से दबोच के रखने की

 

शायद ज़िन्दगी ने

इन सवालों के ज़रिये बहुत कुछ सिखा दिया है

मगर हैरान हूँ

कि ये सवाल फिर भी चट्टान की तरह सीना ताने खड़े हैं

 

तो सोचा आज क्यों न इन सवालों से इक सवाल किया जाये

चलो आज इन सवालों से रूबरू हुआ जाये

मन की शान्ति के लिए

इतनी ज़हमत तो लाज़मी है

 

शायद इसीलिए मन कुछ अशांत सा हुआ है

लगता है सवालों का बवंडर फिर से उमड़ गया है

 

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