खज़ाना
कभी अपने दिन में ढूँढा तुम्हें
कभी तुम्हारी रातों में हम तड़पते रहे
कभी अपने सावन में महसूस किया तुमको
कभी तुम्हारी सर्दी में हम ठिठुरते रहे
दिन बीते, मौसम बदले
यादों के ख़ज़ाने भरते रहे
तुम अपनी ज़िन्दगी में मसरूफ़ रहे
हम अपनी ज़िन्दगी जीते रहे
ग़िला नहीं है तुमसे कोई
बस एक ही ग़म सताए है
कहते हैं खुदा के घर, खज़ाना ले जाने की इजाज़त नहीं
तो इसी सोच में डूबे हैं कि वहाँ ज़िन्दगी कैसे गुज़र होगी
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