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बचपन का ज़माना

कुछ लम्हें, कुछ यादें बचपन की

गीली मिट्टी सी सौंधी खुशबू लाती हैं

इत्र फ़िज़ाओं में घोल कर

दिल के तार छू जाती हैं

तब मन से एक ही आवाज़ आती है

क्यों गुज़र गया वो बचपन का ज़माना !

 

वो बचपन का लापरवाह ज़माना

वो हर झगड़े को पल में भूल जाना

वो गर्मी की छुट्टियों में नानी के घर जाना

वो मस्ती का आलम, वो हँसना- हँसाना

न कल की फ़िक्र, न आज की चिंता

बड़ा दिलचस्प था वो बचपन का ज़माना !




वो खिड़की से ताका-झाँकी करना

वो छत पे सोना, वो तारे गिनना

वो घर से बाहर रहने के बहाने ढूंढना

वो पकड़म-पकड़ाई, पिट्ठू और स्टापू बनाना

न दिल टूटने का पता था, न ग़मों का अफ़साना

न जाने क्यों गुज़र गया वो बचपन का ज़माना !

 

वो बारिश में भीगना, वो कश्ती चलाना

वो दोस्तों के घर यूँही चले जाना

वो चित्रहार, रामायण का दूरदर्शन पर आना

वो चाचा चौधरी, मोटू-पतलू किराये पर लाना

न खाने में कीटाणुओं का डर, न पानी का फिलटर लगाना

जाने कहाँ चला गया वो अपने बचपन का ज़माना !

 

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