मंजिल
वो बहता हुआ पानी
वो ठहरा हुआ मुसाफिर ।।
पूछते हैं एक दूसरे से
तेरी मंजिल क्या है आखिर ।।
पूछता है मुझसे क्यों
कहता है ये पानी ।।
रोकता है मुझको क्यों
क्या है ए मुसाफिर तेरी कहानी ।।
सागर में जाकर मिलना
यही बस है मुझको करना ।।
पूछता है मुझसे क्यों
क्या है ए मुसाफिर तेरी कहानी ।।
ठहर सा गया हूं मैं
ना दिखती कोई राह है ।।
जाउ किस ओर को मैं
ना मेरी कोई दिशा है ।।
ना पता है अपनी मंजिल
ना पथ का है ख्याल ।।
चला जा रहा हू मैं
जहां ले जाता ये जहाँ है ।।
तू मुझको बता दे क्या होती ये मंजिल
पाकर इसको, क्या होता हैं हासिल ।।
बुझा दे मेरी ये प्यास दशकों पुरानी
क्या होती ये मंजिल, बता दे ए पानी ।।
सुनाता हूँ तुझको
जो सबको सुनाया ।।
मंजिल नहीं कोई रहस्य
पर कोई समझ ना पाया ।।
मंजिल नहीं है खुद की खोज
खुद को खो देना होती हैं मंजिल ।।
मंजिल नहीं वो जिसमें सब समां जाए तूझमे
जिसमें समां जाए तेरा अस्तित्व वो होती है मंजिल ।।
ये मंजिल ना पूछे पता तेरा क्या है
ये मंजिल ना जाने क्या तेरा रास्ता है ।।
सफर को अपने तू जी भर के जीले
ना होगा सफर भी जहां है तेरी मंजिल ।।
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