Stories That Matters

Every Thought Matters

यादें

तुम कहते हो

अपने प्यार से आज़ाद कर दें तुम्हें

मगर यादों से आज़ाद

क्या कर पाएँगे कभी?

 

रेगिस्तान की धूप में

पीपल की ठंडी छाँव सी हैं ये यादें

जो अपने मखमली कोमल आँचल से

ज़िन्दगी के ताप से महफ़ूज़ रखती हैं मुझे

 

तुम्हारी यादों के ठंडे झोंके

जब सहलाते हैं मुझे

तब ग़म-ए-दुनिया से मुख्तलिफ़ हो

मैं सहरा में गुंचा ढूंढती हूँ

 

सावन की हर बूँद याद दिलाती है मुझे

उन लम्हों की जो साथ गुज़ारे थे कभी

जब हर फजर मोहब्बत की दस्तक से आँख खुलती थी

और हर शब तुम्हारी आगोश में गुज़रती थी

 

वो बातें, वो मुलाक़ातें

वो नोक-झोंक, वो शिकायतें

किस तरह उन जज़्बातों से

तुम्हारी शख़्सियत को मिटा दूँ

 

तुमने तो कह दिया कि भूल जाएँ तुम्हें

और इस मोहब्बत से आज़ाद कर दें

मगर किस तरह उस पिंजरे से आज़ाद करें तुम्हें

जिसमे क़ैद हम खुद ही हैं, तुम नहीं

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