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कविता : ये पल

मन न जाने क्यों आज फिर उदास है

कुछ खोने का डर और कुछ पाने की आस है

 

उलझा हूँ आज फिर अपने ही बुने जाल में

कुछ हक़ीक़त से इत्तेफ़ाक़ है, कुछ अपने ही ख़्याल से

 

जो छूट गया उसे पाने की आस अब भी है

और आगे की मंज़िल का रास्ता धुंधला ही है

 

जब हर जवाब से उभरते अनेकों अदभुत सवाल हैं

तब अपनी ही शख़्सियत बन जाती इक सवाल है

 

जब अपने ही अरमानों से शिकस्त खाता हूँ मैं

तब होंसलों की अर्थी उठाने को विवश हो जाता हूँ मैं

 

क्या अपने ही एहसासात की समझ आएगी भी मुझे

या ज़िन्दगी हर पहर यूँ ही रुलाएगी मुझे

 

शायद इन्हीं सब ख़्यालों से बेचैन ये मन है

शायद इसीलिए मन आज उदास सा कुछ है

 

कुछ खोने का डर है, कुछ पाने की आस है

शायद इसीलिए मन आज कुछ उदास है




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